जाति-धर्म के नाम पर शिक्षण संस्थान, क्यों?

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Petitioning: TRUE INDIAN

Petitioner: KKumar Abhishek started on October 28, 2014

जाति-धर्म के नाम पर शिक्षण संस्थान, क्यों?

'शिक्षा' समाज में शांति, समृद्धि और अखंडता का सर्वक्षेष्ठ माध्यम है! यह हर मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता हैं! यही कारण है की शिक्षा को किसी जाति-धर्म की संकुचित दीवारों में कैद नहीं किया जा सकता है! किसी 'धर्म' का 'अध्ययन' हो सकता है, लेकिन 'अध्ययन' का 'धर्म' नहीं हो सकता ! ..बावजूद इसके हमारे देश में 'शिक्षा' को बार-बार धार्मिक व् जातिसूचक शब्दों के साथ परिभाषित करने का दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास किया गया है! 'अध्ययन' को जाति-धर्म के साथ जोड़कर ...शिक्षा के औचित्य और उदेश्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया है ! वास्तव में भारत की यह दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर ...हर सच्चे भारतीय के लिए शर्मनाक है! हम सबके लिए शर्मनाक है कि, जिस 'शिक्षा' ने हमारे समाज को अनेकों विभिन्ताओं के बावजूद जोड़ने का काम किया, हमने उसे ही तोड़ने का काम किया! हमने अपनी विक्षित मानसिकता के प्रभाव में शिक्षा को ही जाति और धर्म कि पहचान में रंग दिया! आज देश के कोने-कोने में जाति-धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर खुले शिक्षण संस्थान ...एक समाज के रूप में हमारी वैचारिक परिपक्वता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं ...!

आज हमें सोचना होगा कि शिक्षण संस्थाओं के नामों में हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई, ब्राह्मण, भूमिहार, क्षत्रिय, हरिजन, कुशवाहा, वैश्य, चौधरी जैसे शब्दों के प्रयोग का क्या औचित्य है? क्या इन संस्थानों में अन्य धर्मों और जातियों से सम्बन्ध रखने वाले छात्रों के लिए जगह नहीं है? क्या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सिर्फ हिन्दू छात्रों को ही ज्ञान अर्जित करने का अधिकार है? क्या 'अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' में सिर्फ मुस्लिम ही पढ़ सकते है? अगर नहीं, तो फिर 'ज्ञान के मंदिर' पर धार्मिक व् जातिगत मुहर लगाने कि आवश्यकता क्यों पड़ी? कहीं इसके पीछे इस बात का डर तो नहीं कि,...'शिक्षित समाज में जाति-धर्म अप्रासंगिक हो जायेंगे', इसलिए जाति-धर्म को ही शिक्षा का 'प्रसंग' बना दिया गया ! अगर संस्थापकों कि पहचान ही इसका कारण है....तो भारत सरकार का अंग 'शिक्षा मंत्रालय' क्या कर रहा था? इन शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित करने वाली संस्थाएं ...देश में किस शैक्षणिक व्यवस्था को संचालित कर रही है?

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, सामाजिक एकता और अखंडता हमारी पहचान है ...बावजूद इसके समाज को खंडित करने वाली विचारधारा से जुड़े शब्द ..हमारी 'शिक्षण व्यवस्था' कि पहचान हैं ! संविधान और राष्ट्र कि संप्रुभता कि धज्जियाँ उड़ाते हुए सांप्रदायिक शब्दों को शिक्षा कि पहचान बनाया जाता है...और फिर भी हम चुप हैं! आज हम सबके सामने बड़ा प्रश्न है कि ...'जाति और धर्म के नाम पर बने, शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करके हमारे बच्चे राष्ट्र व् समाज को कौन सी दिशा देंगे? हम इस सवाल से भाग तो सकते है, लेकिन अपने समाज की वास्तविकता को नहीं बदल सकते ! आज जाने-अनजाने 'शिक्षा व्यवस्था' सामाजिक भेदभाव, उच्च-नीच, वर्ग-विभेद का कारण बन रहा है! इसका असर छात्रों की मानसिकता पर भी पड़ रहा है,! कहीं न कहीं हर छात्र का यह प्रयास रहता है की उसका नामांकन उसी संस्थान में हो..जो उसके धार्मिक/जातिगत परिचयों से जुड़ा हो! उसे हमेशा इस बात का डर सताता है की अन्य संस्थानों में वह सुरक्षित नहीं रहेगा! ...क्या यह परिस्थिति हमारे देश की शिक्षण व्यवस्था की दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर नहीं पेश करती है! हमें इस तस्वीर को बदलना होगा !.हमें अपनी चुप्पी को तोड़नी होगी ! शिक्षा को हथियार बना समाज को तोड़ने कि जो साजिशे रची गई है ..हमें तय करना होगा कि ऐसी साजिशे भविष्य में कभी सफल न हों! इस देश के हर सच्चे भारतीय को..जिसे मानवता में यकीं है. जगना होगा! हर उस इंसान को जगना होगा, जिसके मन में शिक्षा और शिक्षा के मंदिर में आस्था है! विशेषकर हम युवाओं का जगना होगा , एक मजबूत इरादें के साथ अपनी सशक्त आवाज को बुलंद करना होगा ! यह आवाज हर उस कान में जानी चाहिए ...जिनके हाथों में आज देश की बागडोर है, हमारी शिक्षा कि बागडोर है, जिससे संविधान कि धज्जियां उड़ाने वाले शब्दों का प्रयोग 'शिक्षा' के साथ भविष्य में न हो !

आइये हम सब मिलकर एक पहल करें ! इस सन्देश को देश के कोने-कोने में पहुचाएं ! अधिक से अधिक लोग.. इस विषय पर एकजुट हो..और हम सब मिलकर देश की नयी सरकार के सामने इस विषय को मजबूती से उठायें ! अतः आप सभी इस प्रपत्र पर तत्काल अपना हस्ताक्षर बनायें, अपने मित्रों को भी आमंत्रित करें ! आरम्भ हमने किया, लेकिन प्रयास हम सबका होना चाहिये....तभी हम सफलता की उमीद कर सकते हैं !
जय हिन्द!
- के.कुमार 'अभिषेक'
(मुख्य सचिव : यंग वारियर्स प्रोग्रेसिव सोसाइटी)
बक्सर ( बिहार)